How to write 'UPSC Essay' Tips In Hindi 2023 ? |सिविल सेवा परीक्षा में निबंध कैसे लिखे इन हिंदी 2023 ?

सिविल सेवा परीक्षा में निबंध के प्रश्नपत्र की प्रासंगिकता और महत्त्व के सम्बन्ध में किसी को कोई सन्देह नहीं है,लेकिन सिविल सेवा परीक्षा में निबंध कैसे लिखे ?इसमे आपको संदेह हो सकता है। 

तो चलिये आज ये लेख सिविल सेवा परीक्षा में निबंध कैसे लिखे इन हिंदी 2023 ? पढ़ने के बाद आपका संदेह पूरी तरह से गायब हो जाएगा।

How to write 'UPSC Essay' Tips  In Hindi 2023 ? |सिविल सेवा परीक्षा में निबंध कैसे लिखे इन हिंदी 2023 ?
सिविल सेवा परीक्षा में निबंध कैसे लिखे इन हिंदी 2023 ?


दरअसल निबंध का यह 250 अंकों का प्रश्नपत्र मुख्य परीक्षा के नवीनतम पैटर्न में सफलता की एक बड़ी अनिवार्यता बनकर उभरा है। सिविल सेवा परीक्षा 2014 की टॉपर इरा सिंघल और मुझे दोनों को ही निबंध में 160 अंक प्राप्त हुए थे, जो सम्भवतः उस वर्ष के सर्वाधिक अंक थे। सुखद तथ्य यह है कि मेरे द्वारा हिन्दी माध्यम में लिखे गए निबंधों को भी सुश्री इरा सिंघल के अंग्रेजी माध्यम में लिखे गए निबंधों के बराबर अंक प्राप्त हुए। 

इससे अनिवार्य तौर पर तो नहीं, पर सामान्य तौर पर यह जरूर माना जा सकता है कि निबंध के प्रश्नपत्र में भाषा कोई समस्या नहीं है और यदि बेहतर और सटीक रणनीति बनाकर अच्छे निबंध लिखे जाएँ तो श्रेष्ठ अंक हासिल किये जा सकते हैं।

प्रथमदृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि निबंध उन सात प्रश्नपत्रों की तरह ही 250 अंकों का एक प्रश्नपत्र है, जिसके अंक मुख्य परीक्षा के कुल स्कोर (1750 अंक) में जोड़े जाते हैं; पर बारीकी से समझने पर यह बात सामने आती है कि निबंध का प्रश्नपत्र इसमें प्राप्त होने वाले अंकों के लिहाज से कही अधिक महत्त्वपूर्ण और उपयोगों है। 

निबंध के प्रश्नपत्र में मिले गत वर्षों के अंक यह बताते हैं कि निबंध में प्राप्तांकों की रेंज बहुत व्यापक है। इसका अर्थ है कि एक ओर जहाँ यह प्रश्नपत्र 50 या उससे भी कम अंकों का स्कोर दे देता है, वहीं दूसरी ओर कुछ लोग इसमें 150 या उससे अधिक अंक भी प्राप्त कर लेते हैं। इस तरह यह 100 अंकों का गैप न केवल आपकी रैंक को प्रभावित करता है बल्कि अन्तिम रूप से आपके चयन में भी निर्णायक हो जाता है।

अत्यधिक महत्व और बढ़ती प्रासंगिकता के बावजूद एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि संघ लोक सेवा आयोग की प्रतिष्ठित 'सिविल सेवा परीक्षा' में यह अभ्यर्थियों द्वारा सर्वाधिक उपेक्षित-सा प्रश्नपत्र है, जिसकी तैयारी से लेकर इसमें प्रदर्शन तक, अभ्यर्थी एक निश्चिंतता या उपेक्षा के भाव से इसे डील करते हैं। कई अभ्यर्थी तो अपनी तैयारी की पूरी अवधि के दौरान पहला निबंध सीधे मुख्य परीक्षा केंद्र पर जाकर ही लिखते हैं। कई अभ्यर्थियों का यह भी मानना है कि चूंकि यह प्रश्नपत्र अत्यधिक आत्मनिष्ठ (सब्जेक्टिव) प्रकृति का है और इसकी तैयारी का कोई स्पष्ट फॉर्मूला नहीं है, अतः इसकी तैयारी में समय देने का कोई लाभ ही नहीं है। मेरी समझ में निबंध के प्रश्नपत्र की यह घोर उपेक्षा अविवेकपूर्ण है। 

यदि मैं अपनी रणनीति और तैयारी की समग्र प्रक्रिया के सन्दर्भ में बात करूँ, तो यह सत्य है कि मेरी रणनीति में निबंध का अति महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है और मैं इसकी तैयारी को प्राथमिकता पर रखता रहा हूँ। सौभाग्य से उसका सुफल मुझे प्राप्त भी हुआ और मेरी श्रेष्ठ रैंक में इस प्रश्नपत्र ने बेहद प्रभावी भूमिका भी निभाई है।

निबंध एक आत्मनिष्ठ (सब्जेक्टिव) प्रकृति का प्रश्नपत्र है और इसकी तैयारी करने का कोई रटा-रटाया फॉर्मूला नहीं हो सकता। साथ ही, इसके प्राप्तांकों को लेकर कोई सटीक भविष्यवाणी कर पाना भी उचित नहीं है; फिर भी कुछ ऐसी प्रविधियों, तकनीक और तथ्य जरूर हो सकते हैं, जो निबंध के प्रश्नपत्र में न केवल बेहतर प्रदर्शन का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं, बल्कि मेरी समझ में कम-से- कम यह तो सुनिश्चित कर ही सकते हैं कि एक अभ्यर्थी को औसत से बेहतर अंक प्राप्त हो। यह मेरा विश्वास है कि निबंध की समुचित तैयारी और सटीक रणनीति से इस अति महत्त्वपूर्ण प्रश्नपत्र में बेहतर प्रदर्शन किया जा सकता है। 

इस लेख के माध्यम से मेरा प्रयास है कि मैं इस निबंध के प्रश्नपत्र में श्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए कुछ कारगर उपायों और रणनीति पर चर्चा कर इसे अपेक्षाकृत वस्तुनिष्ठ और सरल बनाने की कोशिश करूँ इस लेख के माध्यम से में सबसे पहले निबंध के प्रश्नपत्र से जुड़े सभी महत्त्वपूर्ण पहलुओं पर चर्चा करते हुए इस प्रश्नपत्र से जुड़ी विविध उलझनों के निराकरण की कोशिश करूंगा। 

सबसे पहले समझे कि संघ लोक सेवा आयोग की इस प्रश्नपत्र में अभ्यर्थियों से क्या अपेक्षाएं हैं। आधिकारिक पाठ्यक्रम के अनुसार, “उम्मीदवारों को विविध विषयों पर निबंध लिखने होंगे। उनसे अपेक्षा की जाएगी कि वे निबंध के विषय पर ही केन्द्रित रहें तथा अपने विचारों को सुनियोजित रूप से व्यक्त करें और संक्षेप में लिखें। प्रभावी और सटीक अभिव्यक्ति के लिए अंक प्रदान किये जाएँगे।' 

आइये, सबसे पहले निबंध के इस निर्धारित पाठ्यक्रम का अभिप्राय समझने की कोशिश करते हैं। उपर्युक्त पैरा में चार बिंदुओं पर बल दिया गया है-

निबंध के प्रश्नपत्र की तैयारी के चार महत्वपूर्ण बिंदु―

  • 1. विषय पर ही केन्द्रित रहना
  • 2. विचारों को सुनियोजित रूप से व्यक्त करना
  • 3. संक्षेप में लिखना
  • 4. प्रभावी और सटीक अभिव्यक्ति

यद्यपि निबंध के प्रश्नपत्र की तैयारी के कुछ और भी महत्वपूर्ण बिन्दु हो सकते हैं, पर उपर्युक्त चार बिन्दु निश्चित तौर पर बेहद महत्त्वपूर्ण हैं-

     1. विषय पर ही केन्द्रित रहना:

     निबंध लेखन में बेहतर प्रदर्शन का मंत्र है-विषय की मूल भावना से स्वयं को जोड़े रखना सम्पूर्ण निबंध का झुकाव निरन्तर विषय की ओर बने रहना चाहिए और परीक्षक को ऐसा बिलकुल भी प्रतीत नहीं होना चाहिए कि आप विषय से भटक गए हैं। 

    प्रायः निबंध के विषय बहुत सामान्य, पर अमूर्त किस्म के होते हैं। यदि किसी विषय विशेष के सभी पहलुओं (सकारात्मक व नकारात्मक) को कवर करते हुए विचारों को व्यवस्थित ढंग से प्रस्तुत किया जाए तो अच्छे अंक हासिल करना कोई कठिन कार्य नहीं है।

    2.विचारों को सुनियोजित रूप से व्यक्त करना : 

    दरअसल निबंध न केवल हमारी लेखन शैली का प्रतिबिंब है, बल्कि यह हमारे अब तक के अर्जित ज्ञान, अनुभव और चिन्तन प्रक्रिया का भी निचोड़ प्रस्तुत करता है। अगर हमारे सोचने का ढंग अव्यवस्थित और उलझाऊ होगा तो इसका प्रभाव हमारे निबंध पर भी पड़ेगा।

    बहुत से अभ्यर्थी विचारों की दृष्टि से बहुत समृद्ध और अनुभवी होते हैं, पर निबंध लिखते समय उन विचारों को क्रमबद्ध, सुनियोजित व व्यवस्थित तरीके से अभिव्यक्त नहीं कर पाते। कहीं की ईंट, कहीं का रोड़ा' की प्रवृत्ति से बचने की कोशिश करें। विचारों को सुनियोजित ढंग से व्यक्त करने के लिए एक संक्षिप्त रूपरेखा बना लेना हमेशा बेहतर रहता है। इस रूपरेखा में आप विषय के विभिन्न संभावित पहलुओं के साथ-साथ कुछ प्रासंगिक उदाहरणों, उक्तियों व पंक्तियों को भी शामिल कर सकते हैं।

    3. संक्षेप में लिखना:

    कम लिखें, पर प्रभावी लिखें। ध्यान रखें, 'अति' हर चीज की बुरी होती है, 'अति सर्वत्र वर्जयेत्।' चूँकि तीन घंटे के निर्धारित समय में दो निबंध लिखने होते हैं, अतः निर्धारित शब्द-सीमा का उल्लंघन करने से बचें। 

    पैराग्राफ में लिखें और बहुत लंबे पैराग्राफ न बनाएँ। संक्षेप में लिखना और कम शब्दों में अधिक कहना' एक कला है और यह निबंध लेखन में ही नहीं, बल्कि अभिव्यक्ति के अन्य तरीकों, यथा-संवाद, भाषण, साक्षात्कार, परिचर्चा और व्याख्यान सभी में काम आती है।

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    4. प्रभावी और सटीक अभिव्यक्ति: 

    अभिव्यक्ति एक अच्छे निबंध का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पक्ष है। इस बिन्दु पर हम विस्तार से चर्चा करेंगे। दरअसल, उपर्युक्त तीनों बिन्दुओं को समझकर निबंध लिखते समय उनका समावेश करना निबंध को प्रभावी और सटीक बनाता है। 

    आयोग द्वारा निर्धारित इन चारों बिन्दुओं की कसौटी पर खरा उतरने के लिये अग्रलिखित बातों का ध्यान रखना आवश्यक है-

    1. निबंध का प्रवाह 

    निबंध लेखन का सबसे आकर्षक पक्ष है-निषेध का प्रवाह (Flow)। यदि निबंध में एक सहज प्रवाह होगा, तो परीक्षक की रुचि आरम्भ से लेकर अन्त तक निबंध में बनी रहेगी और यह निश्चित तौर पर अंकदायी होगा। पर प्रश्न यह है कि आखिर निबंध लिखते समय प्रवाह कैसे बनाए रखें? दरअसल निबंध विचारों का व्यवस्थित, सुनियोजित और क्रमबद्ध प्रस्तुतीकरण है, लिहाजा विचारों को व्यक्त करते समय उनके मध्य निहित अन्तर्सम्बन्ध को पहचानने की कोशिश करें और सुनिश्चित करें कि यह अन्तर्सम्बन्ध आपके निबंध में झलके।

    जब एक पैराग्राफ का अन्त होता है, तो कोशिश करें कि अगले पैराग्राफ की शुरुआत पहले पैराग्राफ के अन्त से जुड़ी हो, यानी दोनों में एक सहज सम्बन्ध होना चाहिए। परीक्षक को ऐसा नहीं लगना चाहिए कि आप कहीं से भी, कुछ भी, अव्यवस्थित ढंग से लिखे जा रहे हैं। निबंध में यह प्रवाह निरन्तर अभ्यास से विकसित किया जा सकता है।

    2. निबंध में सन्तुलित दृष्टिकोण / मध्यम मार्ग: 

    विचारधाराएँ और दृष्टिकोण सबके अलग-अलग हो सकते हैं, पर 'सत्य' इन सभी विचारधाराओं के बीच में कहीं निहित होता है। अतः दो विपरीत ध्रुवों पर जाने के बजाय एक सन्तुलित और व्यवहारिक पक्ष लेना हमेशा बेहतर होता है, विशेषकर निष्कर्ष लिखते समय बुद्ध का 'मध्यम मार्ग' (Middle Path) यहाँ विशेष रूप से उपयोगी हो सकता है।

    3. निबंध में विषयवस्तु का व्यापक दायरा/सभी पहलुओं को कवर करना :

     अभिव्यक्ति तभी प्रभावी और सटीक हो सकती है, जब आपका कथ्यः अच्छा और व्यापक हो। विचारों पर हावी संकीर्णता से बचते हुए कोशिश करें कि सन्तुलित दृष्टिकोण अपनाकर चौजों को समग्रता में देखें। इसके लिए निबंध के विषय में निहित विभिन्न पहलुओं/पक्षों को पहचानना और उन पर सुनियोजित ढंग से चर्चा करना, निबंध को प्रभावी बना सकता है। 

    अकादमिक जगत में यह युग 'अन्तर- अनुशासनात्मक अध्ययन' {Inter-disciplinary Studies) का है। ज्ञान के विभिन्न संकाय/ विषय/ अनुशासन परस्पर अन्तर्सम्बन्धित हैं। यह कुछ वैसा ही है, जैसे हमारे सिविल सेवा पाठ्यक्रम में सामान्य अध्ययन के विभिन्न हिस्से आपस में जुड़े हुए हैं। ज्ञान के विभिन्न आयामों के बीच परस्पर जुड़ाव और इन सबकी एक-दूसरे को प्रभावित करने की ताकत को समझने के बाद हम पाते हैं। कि निबंध दरअसल विषय विशेष का उसके सभी प्रासंगिक पहलुओं को कवर करते हुए सुनियोजित व व्यवस्थित विस्तार है। 

    निबंध की विषय-वस्तु के दायरे को व्यापक करने और इसके सुनियोजित विस्तार के लिए इसके विभिन्न पहलुओं को समझना जरूरी है। किसी भी विषय विशेष के कुछ संभावित पहलू (अनिवार्य तौर पर नहीं) इस प्रकार हो सकते हैं-

    1.सामाजिक (Social)
    2.सांस्कृतिक/साहित्यिक (Cultural/Literary)
    3.आर्थिक (Economic)
    4.राजनीतिक/प्रशासनिक/प्रबंधकीय(Political/Administrative/Managerial)
    5.दार्शनिक(Philosophical)
    6.धार्मिक/आध्यात्मिक(Religious/Spiritual)
    7.वैज्ञानिक/तकनीकी(Scientific/Technical)
    8. ऐतिहासिक(Historical)
     9.भौगोलिक(Geographical)
    10.कूटनीतिक (Diplomatic)
    11.जनसांख्यिकीय (Demographic)
    12.पर्यावरणीय/परिस्थिति
    (Environmental/Ecological)
    13. लैंगिक (Gender-based) आदि। 
    इस सूची को अपने मानस पटल पर रखकर विषय के विभिन्न पक्षों को सुव्यवस्थित तरीके से उभारा जा सकता है।

     साथ ही, इन बातों को भी ध्यान में रख सकते हैं-

    (1) समस्याओं के सभी पहलुओं को समझने की कोशिश करें। हमारा प्रशासनिक व राजनीतिक ढाँचा गाँव/शहर से शुरू होकर जिला, राज्य होते हुए देश और फिर विश्व तक जाता है। अतः समस्याओं को उनके सभी स्तरों पर देखें।

    (2) विकास के कुछ मानक या कसौटियाँ हो सकती हैं, जिनके माध्यम से विषय का सार्थक विकास किया जा सकता है, जैसे-

    (क) शिक्षा

    (ख) स्वास्थ्य (ग) रोजगार

    (घ) कृषि

    (ङ) ग्रामीण विकास

    (च) गरीबी उन्मूलन

    (छ) स्वच्छता

    (ज) न्याय

    (झ) ऊर्जा सुरक्षा

    (ञ) पर्यावरण व जैव विविधता संरक्षण

    (ट) संचार व परिवहन आदि। 

    4. निबंध में समग्रता / दूसरों के विचारों का सम्मान 

    चीजों को उनकी समग्रता में देखने की कोशिश करें ज्ञान बहुआयामी और बहुपक्षीय है। किसी एक बात को पकड़कर उसी पर बल देना और बाकी महत्त्वपूर्ण पक्षों को अनदेखा करना समझदारी नहीं कही जा सकती। एक हाथी के साठ अलग-अलग हिस्सों को छूकर हाथी को वैसा ही समझने वाले सात अन्य का उदाहरण याद रखें। हाथी केवल पूँछ या सूँड न होकर स्वयं में एक सम्पूर्ण इकाई है। 

    इसी प्रकार अपनी बात को सर्वश्रेष्ठ न मानकर दूसरों की बातों का भी सम्मान करना सीखें महावीर के अनेकान्तवाद' और 'स्याद्वाद' के सिद्धान्त को ध्यान में रखें। सभी के दृष्टिकोणों का सम्मान करना और विषय को समग्रता में देखना; निबंध को ध्यापक, सन्तुलित और बहुआयामी बनाता है।

    5. निबंध की भूमिका और निष्कर्ष 

    भूमिका और निष्कर्ष लिखने के तरीके को लेकर बहुत से ऊहापोह और उलझनें होती हैं। दरअसल भूमिका लिखने का कोई तय फॉर्मूला नहीं है भूमिका लेखन में मौलिकता जरूरी है। कुछ लोग किसी उक्ति/उद्धरण से शुरुआत करते हैं, तो कुछ लोग किसी कहानी से कुछ विषय की पृष्ठभूमि से शुरुआत करते हैं, तो कुछ विषय की आधारभूत जानकारी से आप इनमें से या इनके अतिरिक्त कोई भी तरीका अपना सकते हैं, बस इतना अवश्य सुनिश्चित करें कि भूमिका दूरदर्शी (Visionary) और प्रभावी (Effective) हो भूमिका लिखने के बाद निबंध के विषय का विस्तार करते हुए निरन्तर प्रवाह बनाए रखें। 

    अन्त में निष्कर्ष लिखना न भूलें। निष्कर्ष लिखने के भी अनेक ढंग हो सकते हैं, पर कोशिश करें कि 'अतिवाद' से बचते हुए सन्तुलित व विनम्र राय रखें और पूरे निबंध का निचोड़ प्रस्तुत करने की कोशिश करें।

    अतिशय भावुकता या उग्रता से लाभ मिलना सन्दिग्ध ही होता है। यदि सम्भव हो तो सकारात्मक नजरिया अपनाते हुए आशावादी बने रहें और निराशापूर्ण निष्कर्ष लिखने से बचें।

     6.निबंध की लेखन शैली व प्रस्तुतीकरण

    'भीजन कैसा बना है और कैसे परोसा गया है, ये दो अलग-अलग बातें हैं। अगर स्वादिष्ट भोजन को अच्छे ढंग से परोस भी दिया जाए तो सोने पर सुहागा' हो जाता है। यदि आपके विचार, तथ्य और तर्क श्रेष्ठ और प्रभावी हैं, तो उनका प्रस्तुतीकरण भी प्रभावी होना चाहिए। 

    यद्यपि संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में 'पठनीय हस्तलिपि' (Legible Hand Writing) को छोड़कर, प्रस्तुतीकरण की शैली को लेकर स्पष्ट तौर पर कुछ नहीं कहा गया है, परन्तु फिर भी मेरी समझ में यदि निम्नलिखित बातों का ध्यान रखा जाए तो प्रस्तुतीकरण को बेहतर बनाया जा सकता है-

    • पैराग्राफ बनाकर लिखें। पैराग्राफ ज्यादा बड़े न हों। उत्तर पुस्तिका के एक पृष्ठ पर दो से तीन पैराग्राफ होना अच्छा प्रभाव छोड़ता है। 
    • व्याकरण की अशुद्धियाँ परीक्षक पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती हैं। अतः सामान्यतः भाषा की त्रुटियों से बचें और वर्तनी का ध्यान रखें।
    • व्याकरणिक शुद्धता का अभिप्राय 'शुद्ध हिन्दी' का प्रयोग नहीं है। सरल और सहज हिन्दी का प्रयोग करें। प्रसंगानुकूल उर्दू के शब्द प्रवाह बनाए रखने में सहायता ही करते हैं, पर ध्यान रखें कि कोई शब्द जान-बूझकर थोपा हुआ न लगे। जहाँ तक तकनीकी/ पारिभाषिक शब्दों के प्रयोग का प्रश्न है, तो जरूरत पड़ने पर उनका प्रयोग कर सकते हैं। भाषा के प्रयोग के दौरान हमेशा ध्यान रखें कि भाषा यांत्रिक या कृत्रिम न होकर सहज और नैसर्गिक होनी चाहिए।
    • हस्तलिपि (Hand Writing) को लेकर कई अभ्यर्थी चिन्तित रहते हैं। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि अच्छी हैंडराइटिंग प्रस्तुतीकरण में चार चाँद लगा देती है और इसका परीक्षक के मनोविज्ञान पर सकारात्मक असर पड़ता है, पर यह असर कमोबेश थोड़ा ही होता है। यथासम्भव स्वच्छ और स्पष्ट लिखें। पठनीयता बनी रहे और परीक्षक को निबंध पढ़ने के लिए अत्यधिक श्रम न करना पड़े।
    • यदि उचित समझें, तो किसी महत्त्वपूर्ण बात को रेखांकित (Under- line) कर सकते हैं।

    7. निबंध में सूक्तियों/कथनों / उद्धरणों का प्रयोग : 

    सूक्तियों/कथनों/ उद्धरणों का प्रयोग करें या नहीं, करें तो कितना करें, ये कुछ प्रासंगिक प्रश्न हैं। मुझे लगता है कि यदि किसी महापुरुष / विचारक / दार्शनिक की उक्ति विषय के अनुरूप है तो उसका प्रयोग बेझिझक किया जा सकता है। हो सके तो निबंध की रूपरेखा बनाते समय इन सूक्तियों को भी लिख लें। सूक्तियों का प्रयोग प्रसंगानुकूल और सहज होना चाहिए। सूक्ति निबंध के विषय से मेल खाती हो और थोपी हुई न लगे। विवादास्पद कथनों को उद्धृत करने से बचें और प्रवाह बनाए रखें।

    8. निबंध में गुणात्मक सामग्री (Content) का प्रयोग : 

    'जितना गुड़ डालें, उतना ही मीठा होता है।' अच्छी और स्तरीय विषय सामग्री निबंध को उत्कृष्टबनाने में सहायता करती है। अतः भूलकर भी वैचारिक संकीर्णता या हल्कापन प्रदर्शित न होने दें। यथा:

    (i) आपके लेखन में व्यक्त विचारों से जातिवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद और साम्प्रदायिकता की गंध नहीं आनी चाहिए। 

    (ii) यद्यपि बहुत से विचारकों/महापुरुषों के जीवन दर्शन और कथनों को उद्धृत किया जा सकता है, पर कुछ सर्वमान्य विचारकों, यथा-अरस्तू सुकरात, प्लेटो, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, ईसा, नानक, कबीर, रैदास, तुलसी, गांधी, नेहरू, टैगोर, अम्बेडकर, विवेकानन्द अरविन्दो आदि को उद्धृत करना सामग्री की गुणात्मकता को बढ़ाता है। 

    धर्म, दर्शन, अध्यात्म तक ही सीमित न रहकर इतिहास, भाषा, साहित्य, मनोविज्ञान, राजनीतिशास्त्र, समाजशास्त्र, विज्ञान, प्रौद्योगिकी प्रबंधन, विधि, प्रशासन आदि विभिन्न क्षेत्रों के भारतीय या पाश्चात्य जगत के श्रेष्ठ विद्वानों को प्रसंगानुकूल उध्दृत किया जा सकता है। बस ध्यान रहे, ऐसा करते हुए जरूरत से ज्यादा अकादमिक (Academic) और बौद्धिक (Intellectual) बनने से बचें। सरल और सहज बने रहें। 

    भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के मूल्य व आदर्श और भारतीय संविधान का दर्शन हमेशा हमारा पथ- प्रदर्शक और प्रेरणास्रोत हैं। प्रसंग के अनुरूप भारतीय संविधान की उद्देशिका, मूल कर्तव्य, राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों और मूल अधिकारों का सन्दर्भ लिया जा सकता है।

    (iii) आवश्यकतानुसार, अपनी बात की पुष्टि के लिए तथ्यों व आँकड़ों का सहारा लेना बेहतर विकल्प है, पर यह इतना अधिक न हो कि निबंध की सहजता और प्रवाह टूटने लगे।


    (iv) जहाँ तक सरकार की नीतियों की आलोचना का प्रश्न है, मुझे लगता है कि कोरी आलोचना करना किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता। एक बार एक चित्रकार ने एक चित्र बनाकर रेलवे स्टेशन पर टाँगा और लिख दिया कि इसमें जो गलतियाँ हैं, उन्हें चिह्नित कर दें। अगले दिन सुबह जब वह स्टेशन पहुँचा तो उसने देखा कि पूरा चित्र निशानों से भरा हुआ था। चित्रकार ने पुनः एक नया चित्र बनाया। उसी स्थान पर उसे टांगकर उसने लिखा कि इसमें जो भी गलतियाँ हों, कृपया उन्हें ठीक भी कर दें। अगले दिन जब वह चित्रकार अपने चित्र को देखने गया, तो आश्चर्यजनक रूप से यह ज्यों का त्यों था अभिप्राय यह है कि सवाल उठाना सरल है और समाधान सुझाना कठिन। 

    शिव खेड़ा का एक प्रसिद्ध कथन है―''अगर हम समाधान का हिस्सा नहीं हैं, तो हम स्वयं ही समस्या हैं।" अतः इस सम्बन्ध में मेरी यही राय है कि कल्याणकारी राज्य नागरिकों की बेहतरी के लिए ही योजनाएँ और कार्यक्रम बनाता है, पर उनमें सुधार की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है। लिहाजा शिकायती और विघ्नसंतोषी प्रवृत्ति से बचें और सकारात्मक दृष्टि से चीजों को ग्रहण करें। सुधार के सुझाव देना हमेशा अच्छा होता है।

    9.निबंध के विषय चयन कैसे करे?

    निबंध के सही विषय का चुनाव आधी जंग जिता सकता है। अंग्रेजी में एक कहावत है- Well begun is half done,' अगर अपनी अभिरुचि और जागरूकता के अनुकूल विषय चुन लिया जाए, तो उस पर एक अच्छा निबंध लिखे जाने की संभावना कहीं अधिक बढ़ जाती है। अतः विषय चुनते समय इन बातों का ध्यान रखें-

    (i) जिस विषय के सन्दर्भ में आपकी अच्छी जानकारी हो, उसे चुनना हमेशा बेहतर होता है। जैसे मीडिया पर अपनी ठीक-ठाक समझ होने के चलते मैंने अपनी परीक्षा में, 'क्या स्टिंग ऑपरेशन निजता पर प्रहार है?' विषय चुना था। साहित्य, दर्शन, भूगोल, विज्ञान, संस्कृति, इतिहास आदि विभिन्न क्षेत्रों की अच्छी समझ रखने वाले अभ्यर्थी अपनी समझ और जागरूकता के क्षेत्र का चुनाव कर सकते हैं।

    (ii) विषय चुनते वक्त विषय से नजदीकी / जुड़ाव (Familiarity) को महत्त्व दे सकते हैं। यदि आप किसी विषय क्षेत्र में रुचि रखते हैं और उसे पढ़ते रहते हैं; तो इसका अर्थ यह है कि आपका उस विषय क्षेत्र से जुड़ाव है। मिसाल के तौर पर मुझे 'महिला व बाल विकास' विषय क्षेत्र में खासी रूचि है। ऐसे विषय चुनना अच्छा रहता है।

    (iii) जिस विषय पर आपके पास पर्याप्त सामग्री व उसकी पुष्टि हेतु तर्क उपलब्ध हों, उसे प्राथमिकता दें। निबंध लेखन के अभ्यास के दौरान जिस विषय पर कभी निबंध लिखा हो और यदि उससे मिलता-जुलता निबंध ही परीक्षा में आ जाए, तो उसे चुना जा सकता है।

    10.निबंध के लिए क्या करें, क्या न करें?

    उपर्युक्त सभी बातों का ध्यान रखने के अलावा भी क्या तैयारी या रणनीति के स्तर पर कुछ और बातें हो सकती हैं, जिनको समझकर निबंध में बेहतर प्रदर्शन लगभग सुनिश्चित किया जा सकता है? मेरी समझ में यह सम्भव है, बशर्ते आप इस प्रश्नपत्र की माँग को अनदेखा न करें, और कुछ छोटी-छोटी बातों का सामान्य तौर पर ध्यान रखें―

    (i) पढ़ने और गुनने की आदत हमेशा विचारों को परिपक्व बनाकर सोच का दायरा बढ़ाती है। भवानी प्रसाद मिश्र ने लिखा है-

    "कुछ लिख के सो, कुछ पढ़ के सो,
     तू जिस जगह जागा सवेरे 
    उस जगह से बढ़ के सो।"
    अतः पढ़ने-लिखने, चर्चा करने और मनन (गुनने) की आदत बनाए रखें और इसे विकसित करते रहें। वैसे इस पुस्तक में प्रस्तुत निबंध स्वयं में भरपूर सामग्री उपलब्ध करा सकते हैं, पर फिर भी ज्ञान के स्रोत को सीमित न करें, अच्छी किताबें/पत्रिकाएँ पढ़ते रहें और हमेशा सीखने की कोशिश करें।

    (ii) लेखन अभ्यास का कोई विकल्प नहीं है। हर सप्ताह निबंध लिखने का अभ्यास जरूर करें और कोशिश करें कि उसका मूल्यांकन करा लें, ताकि तदनुरूप और सुधार किया जा सके।

    (iii)समूह चर्चा (Group Discussion) तैयारी का एक गतिशील और सहभागितापूर्ण तरीका है। साथ ही चर्चा करने से विचार उर्वर और स्थायी हो जाते हैं। उपनिषद् में कहा गया है
    "यादे वादे जायते तत्त्वबोधः।"
    (वाद-विवाद से ही तत्त्वबोध होता है)

    (iv) ज्ञान अथाह और अनंत है। हमने इस महासागर की सिर्फ कुछ बूँदें ही चखी हैं। अत: 'अधजल गगरी छलकत जाए' अथवा 'थोथा चना, बाजे घना वाली प्रवृत्ति से दूर रहें और अपने अहं (Ego) को सीखने की प्रक्रिया में आड़े न आने दें। सुकरात ने कहा था, "मैं ज्ञानी इस अर्थ में हूँ कि मैं यह जानता हूँ कि मैं कुछ नहीं जानता।"

    (v) अति आत्मविश्वास (Over Confidence) से बचें पर आत्मविश्वास बनाए रखें। जब आप निरन्तर अभ्यास करते रहेंगे और तदनुरूप सुधार भी करेंगे, तो यह लगभग तय मानिये कि आप एक बेहतर निबंध लिख पाएँगे।

    (vi) समय विभाजन का भी ध्यान रखें। अनिवार्य तौर पर दोनों निबंध लिखें और उन्हें लगभग बराबर समय दें। पहले निबंध को यदि 5-10 मिनट अधिक दे दिये जाएँ, तो कोई समस्या नहीं है। कोशिश करें कि प्रश्नपत्र के क्रम में निबंध लिखें।

    (vii) शब्द सीमा का उल्लंघन न करें। अधिक लिखकर कोई श्रेय प्राप्त नहीं होगा।

    (viii)अंत में, सकारात्मक ऊर्जा बनाए रखें। किसी भी कीमत पर न तैयारी के दौरान और न ही परीक्षा कक्ष में ।
    दुष्यंत कुमार की पंक्तियाँ न भूलें―

    ''कौन कहता है आसमाँ में छेद हो सकता नहीं,

     एक पत्थर जरा तबीयत से उछालो यारों।"

    निबंध लेखन के लिये कुछ और काम की बातें-

    • अभ्यास का कोई विकल्प नहीं है। हर हफ्ते तीन घंटे के लिए बैठें और डेढ़ घंटे में कुल 2 निबंध लिखने का अभ्यास जरूर करें। इसका आपको बेहद फायदा होगा। 
    • पहले कुछ मिनटों में निबंध की एक लिखित रूपरेखा जरूर बना लें, इसमें निबंध के विषय विस्तार के पक्ष, तथ्य, उदाहरण और उक्तियाँ शामिलकर सकते हैं।
    • विषय तसल्ली से चुनें। उसी क्षेत्र के विषय चुनें, जिन पर आपकी पकड़ और समझ अच्छी हो। उदाहरण के लिए, विज्ञान पृष्ठभूमि के लोग तकनीकी विषयों पर कुछ बेहतर लिख सकते हैं। मुझे साहित्य- संस्कृति-जनसंचार और दर्शन से जुड़े विषय ज्यादा आकर्षित करते हैं। अमूर्त विषयों पर ज्यादा बेहतर लिख पाता हूँ। मेरी सलाह है कि अपनी रुचि और संबंधित विषय क्षेत्र की समझ के आधार पर निर्णय लें।
    • शुरुआत प्रस्तावना से करें, जो कई तरह की हो सकती है, जैसे कोई प्रसिद्ध कथन या उक्ति, कोई उदाहरण या विषय की पृष्ठभूमि पर प्रस्तावना में एक विजन होना चाहिए और विषय के विस्तार का संकेत भी होना चाहिए। 
    • निबंध को पैराग्राफ में ही लिखें। एक पृष्ठ पर दो से तीन पैराग्राफ अच्छे लगते हैं।
    • जिस तरह खाना न केवल अच्छा बना हो, बल्कि उसका ढंग से परोसा जाना भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है, ठीक इसी तरह निबंध में भी प्रस्तुतीकरण का अच्छा-खासा महत्त्व है।
    • विषय का विस्तार करते वक्त कोशिश करें कि उसके ज्यादातर पहलुओं को छू सकें। हर विषय के बहुत से पक्ष हैं, जैसे आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, दार्शनिक, ऐतिहासिक और वैज्ञानिक। जितने ज्यादा पहलुओं को छुएँगे, उतना अच्छा प्रभाव पड़ेगा, पर व्यर्थ के विस्तार से बचें।
    • क्रमबद्ध और व्यवस्थित ढंग से लिखें। बेतरतीब और मनमाने ढंग से लिखना खराब प्रभाव छोड़ता है।
    • शब्द सीमा का अतिक्रमण करके समय और श्रम व्यर्थ न करें। 
    • निबंध पूरे जीवन के अध्ययन और अनुभव का एक निचोड़ है। लिहाजा पढ़ते रहें, लिखते रहें और सीखते रहें।

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